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ध्यान एक आध्यात्मिक अनुभूति - साधक अंशित

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शरीर के सभी अवयव मुख्य ही हैं। परन्तु उन सब में महत्वपूर्ण है मन। वह चंचल है। काम, क्रोध, मद, मोह, आलस्य तथा भय वगैरह प्रवृत्तियों का प्रभाव जब मन पर पड़ता है, तब सारा शरीर उसका अनुभव करता है। कहा जाता है कि प्रकाश की तरंगें एक सेकंड में 3 लाख किलो मीटर दूर तक प्रसारित होती हैं। लेकिन मन का वेग उससे भी अधिक है। मन इच्छाओं का निलय है। एक इच्छा की पूर्ति के बाद दूसरी इच्छा होती है। कर्मेद्रियों तथा ज्ञानेंद्रियों के द्वारा मन बाह्य संसार से संपर्क स्थापित करता है। इन इंद्रियों एवं मन को जीतना ही योगशास्त्र का मुख्य लक्ष्य है। भजन, कीर्तन, पूजा, यज्ञ, जप, तप, योगासन, प्राणायाम तथा ध्यान आदि इस लक्ष्य की पूर्ति में अधिक सहयोग देते हैं। ध्यान मन को जीतने का एक मुख्य साधन है। शरीर को हिलावें तो मन भी हिलता है| इसलिए शरीर को एक ही आसन की स्थिति में ज्यादा देर तक बिना हिलाये, स्थिर रूप से रखना योगासनों का उद्देश्य है| महर्षि पतंजलि के अनुसार “स्थिरं सुखं आसनं” है। यह स्थिति ध्यान के लिए अत्यंत आवश्यक है। ध्यान मन को दौड़ने नहीं देता | उसे रोकता है। हर दिन कम ...

जानिये हर प्राणायाम को करने की विधि

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6 महीने तक नियम से सुबह शाम आधा घंटा प्राणायाम को परहेजों के साथ करने से निश्चित रूप से हर खतरनाक से खतरनाक बीमारी में भी आराम मिलते देखा गया है ! प्राण स्वस्थ हो तो शरीर को कोई भी बीमारी छू नहीं सकती है ! सिर्फ एक मणिपुर चक्र के ही जागने भर से शरीर के सभी रोगों का नाश होने लगता है जबकि भारतीय हिन्दू धर्म ग्रन्थों में बहुत से ऐसे अद्भुत योग, आसन व प्राणायाम का वर्णन है जो एक साथ कई चक्रों को जगाते हैं जिनसे पूरा शरीर ही एकदम स्वस्थ और दिव्य होने लगता है | प्राणस्य आयाम: इत प्राणायाम’। ”श्वासप्रश्वासयो गतिविच्छेद: प्राणायाम”- (यो.सू.2/49) अर्थात प्राण की स्वाभाविक गति श्वास-प्रश्वास को रोकना प्राणायाम (Pranayama) है। सामान्य भाषा में जिस क्रिया से हम श्वास लेने की प्रक्रिया को नियंत्रित करते हैं उसे प्राणायाम (pranayam) कहते हैं। प्राणायाम से मन-मस्तिष्क की सफाई की जाती है। हमारी इंद्रियों द्वारा उत्पन्न दोष प्राणायाम से दूर हो जाते हैं। कहने का मतलब यह है कि प्राणायाम करने से हमारे मन और मस्तिष्क में आने वाले बुरे विचार समाप्त हो जाते हैं और मन में शांति का ...