नकारात्मक विचार

सम्पूर्ण और प्रभावी व्यक्तित्व की जब भी बात होती है तो ज़ेहन में एक स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मन की छवि ही आती है, यानि केवल शरीर के सुडौल और स्वस्थ होने की स्थिति ही व्यक्तित्व को बयां नहीं करती है बल्कि आपका स्वभाव और व्यवहार भी इसमें शामिल होता है। मन में आने वाले विचारों की प्रकृति ही तय करती है कि आप किस प्रकार के व्यक्तित्व के धनी है। दिमाग में आने वाले विचार दो तरह के होते हैं, सकारात्मक विचार जो आपको आनंद और ऊर्जा से भर देते हैं और नकारात्मक विचार जो आपको निराशा और तनाव के समंदर में डूबो देते हैं। अनेक प्रयासों के बाद भी आप अपने दिमाग में आने वाले इन विपरीत विचारों को रोकने में सफ़ल नहीं हो पाते हैं और इसके चलते आपकी निराशा और तनाव और भी ज़्यादा गहरे होते जाते हैं।

रिसर्च बताते हैं कि रोज़ाना हमारे दिमाग में आने वाले विचारों की संख्या करीब 60,000 होती है और इनमें से 70-80 % नकारात्मक विचार ही होते हैं जो हमारे जीवन को विपरीत तरीके से प्रभावित करते हैं और हम इनसे अनजान, अपने जीवन की मुश्किलों का ज़िम्मेदार भाग्य को मान लेते हैं जबकि इसके लिए जिम्मेदारी तो हमारे दिमाग की है और अपने दिमाग के विचारों को संयमित करना हमारे अपने हाथ में है। ऐसे में ये जानना पहली ज़रूरत है कि आख़िर दिमाग में ये नकारात्मक विचार आते ही क्यों है और इतने प्रयासों के बाद भी इनका आना थमता क्यों नहीं ? तो चलिए, आज आपको बताते हैं दिमाग में नकारात्मक विचार आने के कारण –

बीते कल का अफसोस – बीते समय में, कई बार जाने अनजाने में कुछ ऐसी ग़लतियाँ हो जाती है जिन पर आपको आज भी अफ़सोस है। ऐसे में, जब भी उन बुरे अनुभवों जैसी स्थिति आपको वर्तमान में दिखाई देती है तो आप भूल जाते हैं कि वो समय बीत चुका है और उससे जुड़ा पछतावा आपको निराश और बेचैन बना देता है और इसलिए उस एक ख़्याल से जुड़े ढ़ेरों नकारात्मक विचार आपके दिमाग पर हमला कर देते हैं जिन्हें काबू करना आपके बस में नहीं रहता क्योंकि उस समय ग्लानि के कारण आप काफी कमज़ोर महसूस कर रहे होते हैं। इससे छुटकारा पाने का यही तरीका है कि आप अपनी बीती गलतियों को ना दोहराने का वादा खुद से करें और अपनी उन भूलों से सीख लेकर आगे बढ़ने का लगातार प्रयास करें।

वर्तमान की चिंता – इसे इंसानी प्रवृति कहा जाए या ज़्यादा विवेक होने का नुकसान ? अन्य जीवों की तुलना में, इंसानों में ज़्यादा विवेक होता है और सोचने समझने की शक्ति भी अधिक होती है जिसका फ़ायदा हर इंसान अपने हर कदम पर उठाता भी है लेकिन यही विवेकशीलता उसकी राह का रोड़ा बन जाती है जब वो सामान्य स्थिति को भी गहराई से सोचता चला जाता है जबकि इसकी कोई आवश्यकता ही नहीं। सामान्य सी परिस्थितियों को भी बार बार चिंतन मनन करके जांचने की ये इंसानी प्रवृति शांत दिमाग में नकारात्मक विचारों को प्रवेश करवाती है और फिर नकारात्मक विचारों की ये श्रृंखला रुकने का नाम ही नहीं लेती और व्यक्ति का ख़ुशनुमा वर्तमान भी इन विपरीत विचारों के चंगुल में फंस जाता है।

आने वाला कल कैसा होगा – वर्तमान में जीने की बजाए भविष्य के ख़्यालों में खोये रहना भी डर पैदा करता है। उन चीज़ो और हालातों का डर, जिनके बारे में आप कुछ भी नहीं जानते और चाहकर भी नहीं जान सकते। आने वाले कल के लिए थोड़ा विचार करना उचित है लेकिन उसके बारे में सोच सोचकर डरना नेगेटिव विचारों को खुला निमंत्रण देने जैसा है क्योंकि स्वयं डर की प्रकृति नकारात्मक ही तो है।

नकारात्मक माहौल में रहना – जैसा माहौल आप खुद को देंगे वैसे ही विचार आपके दिमाग में चलते रहेंगे जो आपके व्यक्तित्व को निर्धारित करेंगे। जब आपके आसपास ऐसे लोग होते हैं जो सिर्फ कमियाँ निकालना जानते हैं, हर बात के नकारात्मक पहलू पर ही ज़ोर देते हैं और आपको प्रेरित करने की बजाए आपका मनोबल कमज़ोर बनाते हैं तो ऐसे लोगों और ऐसे माहौल के बीच रहकर सकारात्मकता की अपेक्षा कैसे की जा सकती है। इसलिए अपने दिमाग में आने वाले अनगिनत विपरीत विचारों के लिए अपने दिमाग को कोसने की बजाए अपना माहौल बदलिए और ऐसी संगत चुनिए जो हर स्थिति में आपको सकारात्मक पक्ष दिखाए और आगे बढ़ते जाने की प्रेरणा से भर दें।

असफ़लता से बार बार सामना होना – आप भले ही अपनी तरफ़ से पूरा प्रयास करते हो लेकिन फिर भी आपको असफलता का ही सामना करना पड़ा है, वो भी कई बार। ऐसे में थककर निराश हो जाना स्वाभाविक है और निराशा की इस स्थिति में नकारात्मक विचारों का आपके दिमाग में दौड़ना भी एकदम सामान्य ही है। इस निराशा के दौर को लम्बे समय तक रखने की बजाए आपको ज़रूरत है फिर से खड़े होने की और नए सिरे से प्रयास करने की, इस बार अपनी कमियों को सुधारकर फिर से जुट जाने की,क्योंकि आप जानते हैं कि प्रयास ही सफ़ल होते हैं। शुरुआत में सकारात्मक बने रहने में आपको थोड़ी मुश्किल होगी, जिसे आसान करने के लिए आप कुछ ऐसे बाहरी साधन अपने पास रखिये जो आपको पॉजिटिविटी से भर सके, चाहे वो आपके ऐसे दोस्त हो जो आपकी काबिलियत पर यकीन रखते हो या फिर प्रेरणा से भरे लेख और वीडियो।

आत्मविश्वास का डगमगाना – आप ये तो जानते हैं कि कोई कार्य करना आपको आता है और आप इसे कर पाएंगे लेकिन जैसे ही उस काम से जुड़ी छोटी-मोटी मुश्किलों से आपका सामना होने लगता है तो आप डर जाते हैं और आपका आत्म विश्वास हिलने लगता है और तब आप पलायन की नीति अपना लेते हैं यानि उस काम को छोड़कर भाग जाते हैं। इस पूरे हालात में आप अपने अंदर कुंठा, तनाव, हताशा, हीन भावना जैसे घातक विचारों का अनुभव करते हैं जो आपको कई बार अवसाद का शिकार भी बना देते हैं।

खुद के वास्तविक स्वरुप को नकारना – प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि वो परफेक्ट ही दिखे। चाहे लुक्स हो, करियर हो या कम्पलीट पर्सनॅलिटी। हम जहाँ जाए वहाँ सिर्फ हमारी प्रशंसा ही हो। लेकिन ऐसा होना तो संभव नहीं है और न ही ये संभव है कि हर व्यक्ति परफेक्ट हो। ऐसे में जब हमें अपने लुक्स, स्वभाव या व्यक्तित्व के बारे में बाहरी दुनिया से वास्तविकता का पता चलता है तो इसे स्वीकारना आसान नहीं होता और इससे पैदा होने वाली हीन भावना हमारे दिमाग पर हावी हो जाती है। इससे बेहतर तो यही होगा न कि हम अपने आप को अपने वास्तविक स्वरुप में स्वीकार ले और फ़िर अपने अच्छे व्यवहार से दुनिया को प्रभावित करें।

समय की परिवर्तनशीलता को अस्वीकारना – समय हमेशा एक सा नहीं रहता, अच्छा और बुरा समय हर व्यक्ति का आता है लेकिन कई बार हम ये आस लगा लेते हैं कि अच्छा समय ही हमेशा बना रहे, बुरा समय कभी न आये। ऐसी सोच के चलते, बुरे समय में संतुलन बना पाना संभव नहीं हो पाता और लड़खड़ाने की इस स्थिति में नकारात्मक विचारों से हमारी दोस्ती और भी ज़्यादा गहरी होती जाती है। बेहतर ये होगा कि समय के इस बदलाव को सहज स्वीकारा जाए ताकि अच्छे समय का सदुपयोग हो सके और बुरे समय को संयम के साथ, आशावादी रहते हुए गुज़ारा जा सके।

ये हमारे अपने नज़रिये का ही परिणाम है कि हमें नेगेटिविटी का ज़्यादा सामना करना पड़ता है क्योंकि हम खुद नकारात्मकता को ज़्यादा महत्व देते हैं, बजाए वास्तविक और सकारात्मक विचारों के।

इतना सब जान लेने के बाद, अब आपके लिए सिर्फ ये जानना आवश्यक है कि आपके हालात और आपकी ख़ुशी आपके अपने हाथ में है। जैसा सोचेंगे, वैसा ही पाएंगे क्योंकि आप दिमाग के मालिक है, दिमाग आपका मालिक नहीं। तो बस, देर किस बात की! इसी पल से अपनी वास्तविकता को स्वीकारिये और अपने दिमाग में आने वाले नकारत्मक विचारों को रोकने की बजाए, इसे सकारत्मक विचारों से भरते जाइये। फिर देखिएगा, आपका व्यक्तित्व दुनिया को सकारात्मक रूप में ही प्रभावित करेगा।

साधक अंशित फेसबुक पेज : https://www.facebook.com/sadhakanshitji

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